पूर्व वकील गोयल की जमानत याचिका पर कोर्ट ने खूब लताड़ा, कहॉ कोर्ट के जालसाजी आर्डर बनाने वाले को जमानत नही मिल सकती
लुधियानाः- लुधियाना का बहुचर्चित सुप्रीम कोर्ट के जाली आदेश बनाने के चक्कर मे बुरे फंसे लुधियाना के ही वकीलुधियानाः- लुधियाना का बहुचर्चित सुप्रीम कोर्ट के जाली आदेश बनाने के चक्कर मे बुरे फंसे लुधियाना के ही वकील को अब अपनी जमानत करवाने की लिए मिन्नते और तरह तरह की निवेदन क्रियाओ से गुजरना पड़ रहा है। पिछले दिनो माननीय अदालत डाः अजीत अत्री की अदालत में 439 सीआरपीसी के तहत जमानत याचिका लगाई गई और जमानत याचिका मे बचाव पक्ष से सीनीयर वकील श्री जीबीएस नागर, श्री हरीश राय ढांडा, व सतनाम सिंह बुलारा वकील पेश हुए। वही शिकायतकर्ता श्री नरेश देवगन शर्मा वकील खुद निजी तौर पर अदालत मे हाजिर थे। यह मामला बताना चाहते है कि वर्ष 2017 का है जिसमें वकील श्री एनडी शर्मा को फंसाने के चक्कर मे श्री विजय गोयल वकील ने एक जाली सुप्रीम कोर्ट के आर्डर अदालत मे पेश कर दिए। जिसको जांचने के बाद श्री एन. डी शर्मा ने माानीनय अदालत मे शिकायत दर्ज़ करवा कर दोषी श्री विजय गोयल व अन्य के खिलाफ पुलिस थाना डाबा मे मुक्दमा नं 83 भा.द.धा 467, 468, 420, 471, 472, 120 बी के अंतर्गत दर्ज़ करवाया। इस केस मे श्री विजय गोयल भागैड़ा भी रहे और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आपने को बचाने और जमानत के लिए हर तरफ से कोशिश की पर हर बार मुॅह की खानी पड़ी। जैसे एक छोटी सी गलती ेने श्री विजय गोयल की जिंदगी और कैरियर ही बरबाद कर दिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर श्री विजय गोयल को अदालत के सामने समर्पण करना पड़ा और श्री विजय गोयल को अभी अंदर गए जुमा जुमा 1 महीना ही हुआ था तो श्री विजय गोयल अंदर सलाखो के पिछे टिक नही रहा था और उसने अपनी जमानत याचिका लगाई जिसकी सुनवाई के लिए श्री बिशनसरुप जज साहिब के पास सुनिश्चित की गई पर बचाव पक्ष ने उक्त जज साहिब से सुनवाई ना करवाने की निवदेन के चलते इसकी सुनवाई डाः अजीत अत्री जज साहिब के पास रखाी गई। कोर्ट की फाईल और शिकायतकर्ता का जवाब जिसमे आरोप लगाए थे कि यदि अरोपी को जमानत दी गई तो अदालतो मे ऐसे कई जाली आर्डरों की भरमार और ऐसे काम करने वालो को प्रोत्साहन मिलेगा और अरोपी अपने केस को रफा दफा करने के लिए कुछ भी कर सकता है। ल को अब अपनी जमानत करवाने की लिए मिन्नते और तरह तरह की निवेदन क्रियाओ से गुजरना पड़ रहा है। पिछले दिनो माननीय अदालत डाः अजीत अत्री की लुधियानाः- लुधियाना का बहुचर्चित सुप्रीम कोर्ट के जाली आदेश बनाने के चक्कर मे बुरे फंसे लुधियाना के ही वकील को अब अपनी जमानत करवाने की लिए मिन्नते और तरह तरह की निवेदन क्रियाओ से गुजरना पड़ रहा है। पिछले दिनो माननीय अदालत डाः अजीत अत्री की अदालत में 439 सीआरपीसी के तहत जमानत याचिका लगाई गई और जमानत याचिका मे बचाव पक्ष से सीनीयर वकील श्री जीबीएस नागर, श्री हरीश राय ढांडा, व सतनाम सिंह बुलारा वकील पेश हुए। वही शिकायतकर्ता श्री नरेश देवगन शर्मा वकील खुद निजी तौर पर अदालत मे हाजिर थे। यह मामला बताना चाहते है कि वर्ष 2017 का है जिसमें वकील श्री एनडी शर्मा को फंसाने के चक्कर मे श्री विजय गोयल वकील ने एक जाली सुप्रीम कोर्ट के आर्डर अदालत मे पेश कर दिए। जिसको जांचने के बाद श्री एन. डी शर्मा ने माानीनय अदालत मे शिकायत दर्ज़ करवा कर दोषी श्री विजय गोयल व अन्य के खिलाफ पुलिस थाना डाबा मे मुक्दमा नं 83 भा.द.धा 467, 468, 420, 471, 472, 120 बी के अंतर्गत दर्ज़ करवाया। इस केस मे श्री विजय गोयल भागैड़ा भी रहे और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आपने को बचाने और जमानत के लिए हर तरफ से कोशिश की पर हर बार मुॅह की खानी पड़ी। जैसे एक छोटी सी गलती ेने श्री विजय गोयल की जिंदगी और कैरियर ही बरबाद कर दिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर श्री विजय गोयल को अदालत के सामने समर्पण करना पड़ा और श्री विजय गोयल को अभी अंदर गए जुमा जुमा 1 महीना ही हुआ था तो श्री विजय गोयल अंदर सलाखो के पिछे टिक नही रहा था और उसने अपनी जमानत याचिका लगाई जिसकी सुनवाई के लिए श्री बिशनसरुप जज साहिब के पास सुनिश्चित की गई पर बचाव पक्ष ने उक्त जज साहिब से सुनवाई ना करवाने की निवदेन के चलते इसकी सुनवाई डाः अजीत अत्री जज साहिब के पास रखाी गई। कोर्ट की फाईल और शिकायतकर्ता का जवाब जिसमे आरोप लगाए थे कि यदि अरोपी को जमानत दी गई तो अदालतो मे ऐसे कई जाली आर्डरों की भरमार और ऐसे काम करने वालो को प्रोत्साहन मिलेगा और अरोपी अपने केस को रफा दफा करने के लिए कुछ भी कर सकता है। अदालत में 439 सीआरपीसी के तहत जमानत याचिका लगाई गई और जमानत याचिका मे बचाव पक्ष से सीनीयर वकील श्री जीबीएस नागर, श्री हरीश राय ढांडा, व सतनाम सिंह बुलारा वकील पेश हुए। वही शिकायतकर्ता श्री नरेश देवगन शर्मा वकील खुद निजी तौर पर अदालत मे हाजिर थे। यह मामला बताना चाहते है कि वर्ष 2017 का है जिसमें वकील श्री एनडी शर्मा को फंसाने के चक्कर मे श्री विजय गोयल वकील ने एक जाली सुप्रीम कोर्ट के आर्डर अदालत मे पेश कर दिए। जिसको जांचने के बाद श्री एन. डी शर्मा ने माानीनय अदालत मे शिकायत दर्ज़ करवा कर दोषी श्री विजय गोयल व अन्य के खिलाफ पुलिस थाना डाबा मे मुक्दमा नं 83 भा.द.धा 467, 468, 420, 471, 472, 120 बी के अंतर्गत दर्ज़ करवाया। इस केस मे श्री विजय गोयल भागैड़ा भी रहे और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आपने को बचाने और जमानत के लिए हर तरफ से कोशिश की पर हर बार मुॅह की खानी पड़ी। जैसे एक छोटी सी गलती ेने श्री विजय गोयल की जिंदगी और कैरियर ही बरबाद कर दिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर श्री विजय गोयल को अदालत के सामने समर्पण करना पड़ा और श्री विजय गोयल को अभी अंदर गए जुमा जुमा 1 महीना ही हुआ था तो श्री विजय गोयल अंदर सलाखो के पिछे टिक नही रहा था और उसने अपनी जमानत याचिका लगाई जिसकी सुनवाई के लिए श्री बिशनसरुप जज साहिब के पास सुनिश्चित की गई पर बचाव पक्ष ने उक्त जज साहिब से सुनवाई ना करवाने की निवदेन के चलते इसकी सुनवाई डाः अजीत अत्री जज साहिब के पास रखाी गई। कोर्ट की फाईल और शिकायतकर्ता का जवाब जिसमे आरोप लगाए थे कि यदि अरोपी को जमानत दी गई तो अदालतो मे ऐसे कई जाली आर्डरों की भरमार और ऐसे काम करने वालो को प्रोत्साहन मिलेगा और अरोपी अपने केस को रफा दफा करने के लिए कुछ भी कर सकता है।156 (3) के तहत शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए आवेदन के संबंध में मामला दर्ज करने से पहले लंबा इतिहास और पुलिस अधिकारियों को भी जालसाजी के आरोप को कम नहीं करना है। आदेश किस उद्देश्य से तैयार किया गया और किस उद्देश्य से बनाया गया, यह देखा जाएगा और साक्ष्य कब प्रस्तुत किया जाएगा। ऐसा नहीं है कि आरोप रिकॉर्ड के विरोधाभासी हैं, बल्कि इतना कहा जाता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश पारित किया गया है, और विवरण विभिन्न शीर्षकों से संबंधित हैं। अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता का तर्क कि कथित दस्तावेज मूल्यवान सुरक्षा नहीं हैं, इस स्तर पर कोई बल नहीं है। यह शीर्ष अदालत का आदेश है जो कथित तौर पर जाली है और अधिनियम के परिणाम गंभीर परिणाम के साथ दूरगामी हैं। आरोपी कोई और नहीं बल्कि प्रैक्टिस करने वाला वकील है जिसके पास पेशे के उच्चतम स्तर को रखने के लिए अदालत का एक अधिकारी है. अपने सहयोगियों, रिश्तेदारों, दोस्तों और समाज के आकलन में अच्छा सम्मान और स्थिति। वह दिल के मरीज हैं और मधुमेह से भी पीड़ित हैं और डॉक्टर ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी है। मुकदमे के दौरान आवेदक की न्यायिक हिरासत उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगी क्योंकि जेल में उसे आवश्यक चिकित्सा उपचार उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। शिकायतकर्ता एक वकील भी है और जैसा कि जिला बार एसोसिएशन लुधियाना को उसके खिलाफ उसके पेशेवर कदाचार के बारे में शिकायतें मिली थीं, जिसके कारण बार एसोसिएशन ने शिकायतकर्ता के खिलाफ शिकायत के आधार पर जांच करने के लिए कुछ वकीलों की एक समिति बनाई थी। आवेदक बार एसोसिएशन द्वारा गठित उस समिति का सदस्य था। जांच रिपोर्ट में, समिति ने शिकायतकर्ता को पेशेवर कदाचार करने के लिए जिम्मेदार ठहराया था और तदनुसार, उसे बार से अलग कर दिया गया था।